सांची का बौद्ध स्तूप, सांची, जिला रायसेन, मध्य प्रदेश - Buddhist Stupa of Sanchi, Sanchi, District Raisen, Madhya Pradesh
सांची का स्तूप एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। सांची का स्तूप एक विश्व धरोहर स्थल है। यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में सांची स्तूप भी शामिल है। सांची स्तूप को देखने के लिए विदेशों से लोग आते हैं। सांची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सांची स्तूप में पहुंचना बहुत ही आसान है। सांची का स्तूप रायसेन जिले में है। सांची के स्तूप बहुत प्राचीन है। यहां पर मुख्य तीन स्तूप देखने के लिए मिलते हैं। सांची परिसर में आपको प्राचीन बौद्ध मंदिर, मॉनेस्ट्री, गुप्तकालीन मंदिर और बहुत सारी प्राचीन वस्तुएं देखने के लिए मिलती हैं। यह स्तूप बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। यह स्तूप ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां पर आपको मोर भी देखने के लिए मिल जाएगा। सांची स्तूप परिसर में एक छोटा सा बाड़ा बनाया गया है, जिसमें खरगोश बदक एवं कबूतर देखने के लिए मिलते हैं। सांची स्तूप परिसर में आपको कैंटीन भी देखने के लिए मिलती है, जहां से आप कुछ भी खा और पी सकते हैं। सांची स्तूप बहुत सुंदर है।
सांची स्तूप के दर्शन - Sanchi Stoop ke darshan
सांची के स्तूप को देखने का सौभाग्य हमें भी मिला। हम लोग सांची के स्तूप घूमने के लिए गए। सांची के स्तूप विदिशा जिले से करीब 10 किलोमीटर दूर होगा। हम लोग विदिशा से भोपाल जा रहे थे। तब हम लोग सांची के स्तूप भी घूमने के लिए गए थे। सांची के स्तूप एक ऊंची पहाड़ी पर बने हुए हैं। सांची के स्तूप तक जाने के लिए बहुत अच्छी सड़क है। हम लोग अपनी स्कूटी से इस पहाड़ी की सर्पाकार रोड से होते हुए हैं। सांची पहुंच गए। यहां पर पार्किंग के लिए बहुत बड़ी जगह है।
हम लोगों ने अपने गाड़ी पार्किंग में खड़ी करें और टिकट लिया। टिकट लेकर हम लोग सांची परिसर में प्रवेश किया। हम लोगों को दूर से ही दो बड़े स्तूप देखने के लिए मिल गए। सांची के स्तूप बहुत सुंदर लग रहे थे। यहां पर बहुत बड़ा बगीचा था। दूर-दूर तक हरियाली थी और पेड़ पौधे थे। यहां पर बहुत सारे कर्मचारी अपना योगदान देते हैं। इस जगह को सुंदर बनाए रखने के लिए और आप भी, अगर यहां जाते हैं, तो इस जगह का ख्याल जरूर रखें। सांची परिसर के गेट पर ही गाइड मिल जाते हैं, जो आपको इस जगह के बारे में अच्छी तरह से डीप नॉलेज दे सकते हैं। अगर आप गाइड करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं।
हम लोग सबसे पहले सबसे बड़े वाले स्तूप के पास गए। यह स्तूप नंबर एक था। यह स्तूप बहुत सुंदर लग रहा था। इस स्तूप में चार तोरण द्वार हैं। यह तोरण द्वार चार दिशाओं में बने हुए हैं। यह तोरण द्वार बहुत सुंदर हैं। सबसे बड़ा स्तूप गोलाकार बना था और इसमें बाउंड्री वॉल भी बनी थी, जो गोलाकार थी। सांची स्तूप के तोरण द्वार में प्राचीन कथाओं को दर्शाया गया है। इसमें पत्थरों को उकेरकर प्राचीन कथाओं को लोगों के सामने पेश किया गया है। स्तूप नंबर एक के ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी थी, जिसमें परिक्रमा पथ बना हुआ था। हम लोग इस तोरण द्वार के अंदर गए, तो हमें भगवान बुद्ध की खंडित प्रतिमा देखने के लिए मिली। इस प्रतिमा का सिर नहीं था। हम लोग बड़े स्तूप के ऊपर गए और परिक्रमा लगाए। उसके बाद हम लोग बाहर आए। यहां पर हम दूसरे द्वार से बाहर आए। सभी तोरण द्वार में सुंदर नक्काशी की गई है और सभी तोरण द्वार के पास बुद्ध भगवान जी की मूर्ति देखने के लिए मिलती है।
सांची का स्तूप नंबर 1 अशोक द्वारा निर्मित ईटो के ऊपर बनाया गया है। इसके प्रखंड एवं हार्मिका के बीच में यष्टि लगी है। यष्टि शीर्ष में तीन छत्र जुड़े हुए हैं। स्तूप के, अधोभाग में दोहरे सोपान मार्ग से युक्त वेदिका मण्डित प्रदक्षिणा पथ एवं एक दूसरा प्रदक्षिणा पथ भूमि तल पर है, जिसमें प्रवेश के लिए चार दिशाओं से एक-एक तोरण द्वार लगा है। स्तूप की ऊंचाई 16.45 और 36.60 मीटर है। तोरण और वेदिका ऊपर खुदे हुए अभिलेखों से ज्ञात होता है, कि विदिशा तथा देशों के विभिन्न भागों से श्रद्धालु व्यक्ति ने इन्हें दान में दिया था। तोरण में अधिकतर मानुषी, बुद्ध, जातक कथाओं, बुद्धचरित, बौद्ध धर्म के इतिहास से समृद्धि तथा विभिन्न अलंकरण- अभिप्रायों का अंकन है। तोरण के निकट भित्ति से सटी हुई चार बुद्ध प्रतिमाओं की स्थापना पांचवी सदी में हुई थी।
सांची का तोरण द्वार - sanchi ka toran dwar
सांची के सबसे बड़े स्तूप के उत्तरी तोरण द्वार में आपको हाथी के नक्काशी देखने के लिए मिलती है, जो बहुत ही सुंदर लगती है। इसके अलावा इस प्रवेश द्वार में शेर की नक्काशी भी की गई है। यहां पर कुछ जातक कथाओं के बारे में बताया गया है। यहां पर जन्म के बारे में बताया गया है। धर्म चक्र के बारे में बताया गया है। खुशहाली के दृश्य को दर्शाया गया है। सबसे ऊपर की तरफ आपको एक हाथी और घोड़े पर सवार लोगों को भी दिखाया गया है।
सांची स्तूप नंबर 1 के पश्चिमी द्वार में आपको कुशीनगर से विभिन्न क्षेत्रों के शासक बुद्ध की अस्थियां ले जा रहे हैं। यह दृश्य दिखाया गया है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात बुद्ध ने मार (इंद्र) तथा उसकी सेना पर विजय पाई है। दृश्य में मार की सेना को भागते हुए बताया गया है। साम जातक का दृश्य - इसमें माता-पिता की सेवा करते साम को बताया गया है, जिसमें राजा ने उसको वार किया है तथा प्रार्थना करने पर माता-पिता सहित जीवनदान मिला है। तपस्या के समय नागराज मुचलिंद द्वारा बुध की रक्षा की जा रही है। नौका विहार के दृश्य को भी इसमें दिखाया गया है। मार द्वारा बुद्ध की तपस्या भंग करने का प्रयास तथा असफल मार हार कर वापस जा रहा है। का दृश्य दिखाया गया है। द्वारपाल - द्वारपाल ग्रीक वेशभूषा में बताया गया है तथा हाथों में आयुध लिए हैं। परंतु तलवार पर त्रीरत्न चिन्ह होने के कारण वह बौद्ध अनुयाई है। यह सभी पृष्ठ भाग में आपको देखने के लिए मिल जाता है। द्वार के अग्रभाग में भी आपको बहुत सी कथाएँ बताया गया है।
सांची स्तूप नंबर 1 के पूर्वी द्वार में आपको स्तूप के रूप में बुद्ध की पूजा करते हुए पशु पक्षी तथा काल्पनिक पशु दिखाए गए हैं। हाथियों द्वारा स्तूप के रूप में बुद्ध की पूजा की जा रही है। यह दृश्य राम ग्राम स्तूप का है। उखेला ग्राम में बुध का आगमन तथा जनजीवन की झांकी बताई गई है। नाग का चमत्कार - उरवेल ग्राम में अग्नि मंदिर में रह रहे विषधर नाग का बुद्ध द्वारा दमन कर चमत्कार दिखाया गया है। नाग दमन के पश्चात साधुओं द्वारा यज्ञ प्रारंभ करना तथा बुद्ध की अनुमति के बिना लकड़ी जलती न लकड़ी कटती है , का दृश्य दिखाया गया है। स्वागत के लिए खड़ा हुआ द्वारपाल। बुद्ध पूजा का दृश्य। महामाया का स्वप्न तथा हाथी को गर्भ में प्रवेश करते हुए बताया गया है। कपिल वस्तु के शासक बुद्ध की पूजा के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। यहां बुद्ध को नगर में आकाश मार्ग से आते हुए दिखाया गया है। द्वारपाल बताए गए हैं। यह सभी चीजें पृष्ठ भाग में दिखाई गई है।
अग्रभाग में बोधि वृक्ष के दर्शन करने के लिए अशोक की यात्रा के बारे में दिखाया गया है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात बुद्ध का भ्रमण और पूजा दिखाई गई है। बोधि वृक्ष का दृश्य जिसमें वृक्ष को मंदिर के साथ बताया है। बुद्ध का उरवेल ग्राम में निरंजना नदी की बाढ़ में चलकर चमत्कार बताना। राजकीय समारोह का दृश्य, जिसमें नगर के बाहर राजा के सैनिक सहित प्रस्थान का दृश्य है। इसमें राजा को बुद्ध की पूजा के लिए जाते हुए बताया गया है। सात स्वर्ग / दिव्य लोक के दृश्य हैं, जिनमें इंद्र को हाथ में वज्र लिए तथा अप्सराओं के साथ बताया गया है। चौथे तोरण द्वार में भी आपको नक्काशी देखने के लिए मिलती है, जिसमें अलग-अलग कथाओं को बताया गया है।
सांची के स्तूप नंबर 1 के पीछे की तरफ हमें मंदिर देखने के लिए मिला। सांची का मंदिर गुप्त काल का है और इसकी छत समतल है। इसमें एक वर्गाकार गर्भ गृह तथा चार स्तंभों पर टिका हुआ मुख्य मंडप देखने के लिए मिलता है। यह मंदिर बहुत सुंदर लगता है। इस मंदिर के गर्भ गृह में किसी भी देवी देवता की प्रतिमा विराजमान नहीं थी। इस मंदिर के स्तंभों के ऊपर शेर की आकृति बनी हुई थी।
यहां पर हमें बड़े-बड़े खम्भे देखने के लिए मिले। यह खम्भे किस लिए थे। इसकी जानकारी नहीं है। इस स्तंभ के हम लोग आगे गए, तो हम लोगों को बौद्ध विहार देखने के लिए मिले। बौद्ध विहार के अवशेष यहां पर देखने के लिए मिले। यहां पर आगे चलकर हम लोगों को मोर देखने के लिए मिला। यहां पर आप और आगे जाएंगे, तो आपको और भी प्राचीन अवशेष देखने के लिए मिलेंगे। मगर हम लोग बौद्ध विहार देखकर वापस आ गए।
यहां पर हमें एक स्तंभ और देखने के लिए मिला। यह स्तंभ एक ही पत्थर से बना हुआ था। इस स्तंभ को सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया था और इसकी स्थापना की गई थी। इस स्तंभ को स्थानीय जमीदार ने तुड़वा दिया था। इस स्तंभ का आधा भाग मूल स्थिति में है। स्तंभ के अन्य टुकड़े पास ही में रखे हुए हैं। इस पर अंकित शिलालेख द्वारा अशोक ने मतभेद करने वाले भिक्षु को बौद्ध संघ से निकलने की चेतावनी दी थी। इस स्तंभ के ऊपरी भाग को 4 शेरों का चिन्ह बना हुआ है और इसे संग्रहालय में संभाल कर रखा गया है। हम लोगों ने इस स्तंभ को देखा। यह स्तंभ बहुत बड़ा था।
यहां पर छोटे-छोटे स्तूप बने हुए थे और बैठने के लिए छायादार एक छोटा सा आंगन बना हुआ था। इसमें चेयर भी थी। हम लोग स्तूप देखते हुए सीढ़ियों के ऊपर गए। सीढ़ियों के ऊपर हम लोगों को मध्ययुगीन मंदिर देखने के लिए मिला। यहां पर बौद्ध विहार भी था और मंदिर भी था। यह मंदिर सातवीं और आठवीं शताब्दी का था। अब यहां पर इमारत के अवशेष ही देखने मिलते है। मंदिर के द्वार पर गंगा और यमुना की उपस्थिति को दिखया गया है। इस मंदिर के शिखर, जो अब ध्वस्त हो गया है। उसमें सुंदर अलंकरण देखने के लिए मिलता है। मंदिर की तीनों और बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए कोठरी बनी हुई थी, जिनके अवशेष यह आपको देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर बौद्ध भगवान जी को तपस्या करते हुए दिखाया गया है। उनकी मूर्ति यहां पर खंडित अवस्था में देखने के लिए मिलती है। मंदिर को देखने में लगता है, कि मंदिर को पत्थर के ऊपर पत्थर रखकर बनाया गया है।
मध्यकालीन मंदिर के पास ही में खरगोश बदक और कबूतर का बाड़ा देखने के लिए मिलता हैं। यहां पर बहुत सारे खरगोश हैं। उनके लिए छोटा सा घर भी बना हुआ है। यहां पर कैंटीन भी है। कैंटीन के पास ही में एक व्यूप्वाइंट बना हुआ है। इस व्यूप्वाइंट से आपको दूर तक का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिल जाता है। हम लोगों ने यहां पर चाय पिया और पानी की बोतल लिया उसके बाद हम लोग सीढ़ियों से नीचे आ गए।
नीचे हमें सांची का स्तूप नंबर 3 देखने के लिए मिला। यह स्तूप बड़े स्तूप से थोड़ा छोटा था। स्तूप नंबर 3 में एक तोरण द्वार भी बना हुआ है। इसमें भी प्राचीन कथाओं को दिखाया गया है। इस स्तूप में भी परिक्रमा करने के लिए प्रदक्षिणा पथ बनाया गया था। इस स्तूप में ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। हमने इस स्तूप के दर्शन किए और उसके बाद हम लोग सांची के स्तूप नंबर 2 के दर्शन करने के लिए गए।
फिर हम लोग स्तूप नंबर दो को देखने के लिए गए। सांची का स्तूप नंबर दो सांची के स्तूप नंबर 1 और 3 से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यहां पर जाने का रास्ता कच्चा है और दोनों तरफ पेड़ पौधे लगे हुए हैं। सांची के स्तूप नंबर 2 की तरफ जाते हुए हम लोगों को एक और बौद्ध विहार देखने के लिए मिला। यह बौद्ध विहार के पास एक छोटा सा जलाशय है। इस जलाशय में पानी नहीं था, सूख गया था। बरसात के समय यह जलाशय पानी से भर जाता होगा। यह जलाशय पूरी तरह पत्थर का बना हुआ था और बहुत सुंदर लग रहा था। यह बौद्ध विहार भी सुंदर लग रही थी।
सांची के स्तूप नंबर 2 के पास एक कुआं भी है। यह कुआं प्राकृतिक रूप से सुंदर दिखता है। यहां पर चारों तरफ पेड़ पौधे लगे हुए हैं और बीच में स्तूप नंबर दो बना हुआ है। स्तूप नंबर 2 का आकार और प्रकार में स्तूप नंबर 3 से मिलता-जुलता है। परंतु इसमें कोई तोरण द्वार नहीं है। इसकी भित्ति के चारों ओर चार प्रवेश द्वारों से युक्त भूतल वेदिका है तथा ऊपर जाने के लिए दो सोपान मार्ग है। इसमें अलंकरण अभिप्राय तथा बुद्ध के जीवन के कुछ दृश्य उत्कीर्ण है। यह स्तूप बहुत सुंदर है और यहां का जो वातावरण है। वह भी बहुत अच्छा है। इस स्तूप को देखने के बाद हम लोग मुख्य स्तूप 1 के पास आकर कुछ समय तक बैठे रहे और उसके बाद हम लोग अपने आगे की यात्रा भोपाल की तरफ चल दिए।
सांची के स्तूप की खोज कब हुई - when was the stupa discovered and by whom
सांची के स्तूप की खोज सन 1818 में ब्रिटिश अफसर जनरल टेलर के द्वारा हुई थी।
सांची का अर्थ - Meaning of Sanchi
सांची का अर्थ होता है - जुटाया हुआ। आपको यहां पर एक शिलालेख देखने के लिए मिलता है। जिस पर भारत के विभिन्न भाग के श्रद्धालुओं ने यहां पर बहुत सारा दान दिया था।
सांची का स्तूप किसने बनवाया था - who built the stupa of sanchi
सांची के स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा तीसरी सदी में करवाया गया था। इसके बाद यहां पर अनेक राजाओं ने अलग-अलग निर्माण करवाए हैं। सांची के मुख्य स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा किया गया था। सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के संरक्षक थे और उन्होंने इस जगह को इसलिए चुना, क्योंकि यह जगह शांत थी। यहां पर साधना की जा सकते थे।
सांची स्तूप का इतिहास - History of Sanchi Stupa
सांची के स्मारक - Monuments of Sanchi
बौद्ध धर्म के महान संरक्षक अशोक ने तीसरी सदी ईस्वी पूर्व में बौद्धगिरी, जिसे अब सांची के नाम से जाना जाता है। सांची में बौद्ध स्मारकों का निर्माण किया था, क्योंकि इस पहाड़ी पर बौद्ध भिक्षु जीवन के लिए आवश्यक शांति और एकांत का वातावरण था तथा यह स्थान विदिशा नामक समृद्धि एवं संपन्न नगरी के समीप था। अशोक ने यहां पर एक पत्थर का स्तंभ और ईटों के स्तूप बनवाए थे। दूसरी सदी ईस्वी पूर्व में अशोक द्वारा निर्मित स्तूप 1 में परिवर्तन किया गया तथा इसकी निचली वेदिका, सोपान मार्ग। ऊपरी प्रदक्षिणा पथ तथा हार्मिका सहित क्षेत्र की स्थापना की गई तथा इसके अतिरिक्त मंदिर 40 का पुनर्निर्माण किया तथा स्तूप 2 और 3 का निर्माण हुआ। सातवाहन युग (प्रथम सदी ईस्वी पूर्व) में स्तूप एक में चार तोरण जोड़े गए और स्तूप 3 में एक तोरणजोड़ा गया। ईसा की प्रारंभिक तीन शदियों में निर्माण कार्य मंद गति से चला। स्तूप 1 के चारों प्रवेश द्वार के सामने प्रदक्षिणा पथ से लगी हुई चार बुध्द मूर्तियां का निर्माण हुआ। मंदिर 17 तथा कुछ अन्य इमारतें गुप्त काल की देन है। सातवीं और आठवीं सदी में यहां अनेक बुध्द प्रतिमाओं की स्थापना की गई तथा एक प्राचीन भवन के अवशेष पर मंदिर 18 का निर्माण किया गया। मालवा के राज्य के प्रतिहार तथा परमार शासकों ने यहां अनेक मंदिरों एवं विहार की, इनमें से मंदिर 45 अपने अलंकरण के लिए उल्लेखनीय है।
सांची का स्तूप कहां पर स्थित है - Where is Sanchi Stupa located?
सांची मध्य प्रदेश का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। सांची मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित एक छोटा सा नगर है। सांची के स्तूप एक ऊंची पहाड़ी पर बने हुए हैं। सांची के स्तूप तक जाने के लिए अच्छी पक्की सड़क बनी हुई है। यहां पर आपकी कार एवं बाइक आराम से जा सकते हैं। सांची स्तूप परिसर के बाहर पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है, जहां पर आप अपनी गाड़ी और बाइक पार्क कर सकते हैं।
सांची के स्तूप कैसे पहुंच सकते हैं - How to reach Sanchi Stupa
सांची के स्तूप मध्य प्रदेश के प्रमुख स्थल है। सांची के स्तूप पहुंचने के लिए सड़क माध्यम और रेल माध्यम दोनों ही उपलब्ध हैं। सांची में रेलवे स्टेशन उपलब्ध है। सांची का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भोपाल में स्थित है। आप अगर हवाई मार्ग से आते हैं, तो भोपाल आ सकते हैं। उसके बाद आप भोपाल से सांची तक रेल माध्यम से आ सकते हैं या आप सड़क माध्यम से भी आ सकते हैं। भोपाल सांची से 45 किलोमीटर दूर है। भोपाल रेलवे भारत के अन्य राज्यों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। अगर आप अन्य राज्यों से यहां पर आते हैं, तो आप आराम से ट्रेन के माध्यम से भोपाल पहुंच सकते हैं और फिर भोपाल से सांची आ सकते हैं।
सांची के स्तूप का फोटो या चित्र - Photo of stupa of sanchi
सांची का स्तूप नंबर एक का तोरण द्वार |
सांची का स्तूप नंबर 1 का पश्चिमी तोरण द्वार |
मध्यकालीन मंदिर |
गुप्तकालीन मंदिर |
बुद्ध भगवान जी की खंडित प्रतिमा |
सांची का स्तूप नंबर 1 |
सांची का स्तूप नंबर 3 |
सांची का स्तूप नंबर दो |
सांची के स्तूप नंबर एक के पीछे बने खंबे |
सांची का बौद्ध विहार |
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