माँ हरसिद्धि मंदिर उज्जैन मध्य प्रदेश - Maa Harsiddhi Temple Ujjain Madhya Pradesh
मां हरसिद्धि माता का मंदिर उज्जैन का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर प्राचीन है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास ही में है। इस मंदिर में मां हरसिद्धि के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। मां हरसिद्धि दुर्गा जी का ही एक रूप है। मां हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थी। यहां पर आपको प्राचीन मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर विशाल दीपस्तंभ भी देखने के लिए मिलते हैं, जो मुख्य मंदिर के ठीक सामने बने हुए हैं। इस मंदिर में आपको श्री यंत्र देखने के लिए मिलता है, जो मंडप की छत में बना हुआ है। मंदिर में प्राचीन 84 महादेव शिवलिंग में से एक विराजमान है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है और मां के दर्शन करके मन शांत हो जाता है। हम लोग महाकालेश्वर मंदिर में घूमने के बाद, मां हरसिद्धि के दर्शन करने के लिए आए थे।
हम लोग महाकालेश्वर मंदिर से घूम कर बाहर आए। यहां पर सुबह समय ही मार्केट लगने लगता है और प्रसाद की दुकान तो यहां पर 6 बजे से ही लग जाती है। हम लोग महाकालेश्वर मंदिर से बाहर आए। तब यहां पर मार्केट लग रहा था। हम लोग सीधे हरसिद्धि माता के मंदिर घूमने के लिए गए। हरसिद्धि माता के मंदिर जाने के रास्ते पर, हम लोगों को बीही का ठेला मिल गया था, जहां पर ताजी बीही थी। तो हम लोगों ने वहां पर बीही खरीद लिया और बीही को कटा लिया और वहीं पर बीही खा लिया, क्योंकि हम लोगों को भूख भी लग गए थी। उसके बाद हम लोग हरसिद्धि माता के मंदिर गए। हरसिद्धि माता के मंदिर के बाहर भी बहुत सारी दुकान लगी थी। यहां पर खाने पीने की बहुत सारी दुकानें हैं। इसके अलावा यहां प्रसाद की भी बहुत सारी दुकानें हैं और बच्चों के खिलौने और घर को सजाने के सामान की भी यहां पर ढेर सारी दुकानें हैं।
हम लोगों ने प्रसाद वगैरह नहीं लिए। हम लोग सीधे माता के दर्शन करने के लिए गए। यहां पर मंदिर का जो एंट्री गेट है। वह बहुत सुंदर था। हम लोग अंदर गए, तो हम लोगों को यहां पर दो दीपस्तंभ देखने के लिए मिले। यह दीपस्तंभ बहुत सुंदर थे और जैसे मैंने इन दीपस्तंभ को कई बार फोटो में देख चुका था। आज रियल में मैंने इन्हें देखा। इन दीपस्तंभों को त्योहारों के समय जलाया जाता है। इसे नवरात्रि, अमावस्या, पूर्णमासी और अन्य त्योहारों के समय जलाया जाता है। यह दीपस्तंभ बहुत ऊंचे थे।
हरसिद्धि मंदिर में दीप स्तंभ देखने के बाद, हम लोग माता के दर्शन करने के लिए गए। यहां पर चप्पलों को उतारने के लिए मंदिर के साइड में एक स्थान दिया गया है। हम लोगों ने वहां पर चप्पल उतार दिया था। उसके बाद हम लोग मंदिर गए। मंदिर में मां हरसिद्धि के दर्शन करने के लिए मिले। मुख्य मंदिर गर्भ गृह में महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के मूर्तियों के मध्य में हरसिद्धि माता की प्रतिमा विराजमान है। माता की प्रतिमा सिंदूर से पुती हुई है। मंदिर में हम लोगों को श्री यंत्र भी देखने के लिए मिला, जो मंदिर की छत पर बना हुआ था। जो बहुत ही सुंदर लग रहा था। साथ में उसमें श्री कृष्ण जी की बहुत सारी पेंटिंग भी बनी हुई थी, जो बहुत अच्छी लग रही थी। हरसिद्धि माता वस्त्र और गहनों से सजी हुई थी और बहुत ही सुंदर लग रही थी। हरसिद्धि माता मंदिर के ठीक सामने शेर की एक प्रतिमा रखी हुई थी। यह मंदिर तांत्रिक पूजा में भी विशेष महत्व रखता है। इसलिए इसे सिद्ध पीठ कहा जाता है।
हरसिद्धि माता के दर्शन करके हम लोगों को बहुत अच्छा लगा। हरसिद्धि माता के दर्शन करने के बाद, हम लोग बाहर आए। बाहर हम लोगों को 84 महादेव में से एक शिवलिंग के दर्शन करने के लिए मिले। इस शिवलिंग कर्कोटकेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है और इस शिवलिंग को लेकर एक कहानी प्रसिद्ध है। कहानी कुछ इस प्रकार है
स्कंद पुराण के अनुसार - जब राजा जन्मेजय सर्प यज्ञ का संकल्प कर आवश्यक तैयारियां कर रहा था। तब इस सूचना से भूमंडल के असंख्य सर्प अत्याधिक व्यथित हुए और इधर-उधर भागने लगे। कुछ सर्प ब्रह्म देव की उपासना करने लगे। कालिया नामक सर्प यमुना नदी में जाकर रहने लगा। नागेंद्र शंखचूर्ण नाम का सर्प मणिपुर में तथा धृतराष्ट्र नाम का सर्प प्रयाग में रहने लगे। कुछ सर्पगढ़ कुरुक्षेत्र में जाकर स्वयं को सुरक्षित मान रहे थे। सर्पों की इस अधीरता को देखते हुए परम पिता ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा, कि महाकाल वन स्थित महामाया हरसिद्धि शक्तिपीठ के निकट स्थित शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से तुम सबको अभय प्राप्त होगा। तब कर्कोटक नामक एक सर्प ने, इस शिवलिंग के समक्ष घोर तपस्या शुरू कर दी। जिससे इस शिवलिंग का नाम कर्कोटकेश्वर के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इस दिव्य शिवलिंग के दर्शन से सभी मनोकामना की पूर्ति हो जाती है।
हमने कर्कोटकेश्वर शिवलिंग के दर्शन किए और उस शिवलिंग के दर्शन करने के बाद, हम लोग बाहर आए। यह मंदिर भी प्राचीन है और मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग विराजमान है और मंडप में नंदी भगवान की प्रतिमा विराजमान है। दर्शन करके हम लोग मंदिर के परिसर में आए, तो यहां पर एक विशाल बरगद का वृक्ष लगा हुआ है, जिसमें लोग मन्नत मानकर धागा बांधते हैं। इसमें बहुत सारे धागे बंधे हुए थे। वृक्ष के नीचे शिवलिंग रखे हुए थे, जो बहुत सुंदर लग रहे थे। शिव भगवान जी के मंदिर के ठीक सामने ही गणेश जी का मंदिर भी स्थित था। यह मनोकामना पूर्ति गणेश जी का मंदिर था और हमने गणेश जी के भी दर्शन किए।
सभी देवी देवताओं के दर्शन करने के बाद, हम लोगों ने यहां पर कुछ फोटोग्राफ खींची। उसके बाद हम लोग मंदिर के बाहर आ गए। मंदिर के बाहर बहुत सारी दुकानें लगी थी, जिसमें खाने-पीने की भी बहुत सारी दुकानें थी। हम लोगों को इस समय तक बहुत ज्यादा भूख लग गई थी। इसलिए हम लोगों ने यहां पर परांठे खाए। परांठे अच्छे थे और सस्ते थे। यहां पर चाय की भी दुकान थी, जहां पर हम लोगों ने चाय पिया। उसके बाद हम लोग आगे की मंदिर घूमने के लिए निकल गए।
हरसिद्धि माता की कहानी - Story of Harsiddhi Mata
हरसिद्धि माता की कहानी या हरसिद्धि माता की कथा इस प्रकार है, कि हरसिद्धि माता का मंदिर शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में अपने दामाद शिव भगवान जी को आमंत्रण नहीं किया, जिसका पार्वती जी को पता चला और पार्वती जी उस यज्ञ में बिना शिव जी को बताए हुए पहुंच गई। यज्ञ पर राजा दक्ष प्रजापति ने शिवजी का बहुत अपमान किया। इस अपमान को पार्वती जी ने सहन नहीं कर पाई और वह जलती हुई हवन कुंड में कूद गई। जिससे उनकी मृत्यु हो गई। जब यह बात शिवजी को पता चली। तब शिवजी ने पार्वती माता का मृत शरीर को उठाया और उस शरीर को उठाकर, वह तांडव करने लगे और विष्णु जी ने अपने चक्र से पार्वती माता के शरीर को अंग को काट दिया। यह अंग जहां-जहां भी गिरे। वहां पर शक्तिपीठों का निर्माण हुआ और उज्जैन में पार्वती माता की कोहनी गिरी। इसलिए यहां पर शक्तिपीठ बना।
स्कंद पुराण के अनुसार - देवी ने यहां पर चंड मुंड नामक राक्षस का वध किया था और उन्होंने शिवजी से सिद्धि प्राप्त की थी। इसलिए इस जगह को हरसिद्धि कहते हैं।
हरसिद्धि माता किसकी कुलदेवी है - Harsiddhi Mata kiski Kuldevi hai
लोगों के अनुसार हरसिद्धि माता राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी। राजा विक्रमादित्य की हरसिद्धि माता कुलदेवी थी।
हरसिद्धि मंदिर का इतिहास - Harsiddhi Mandir Ujjain History
हरसिद्धि माता का मंदिर वर्तमान स्वरूप जो देखने के लिए मिलता है। वह मराठों ने बनवाया है। मंदिर के सामने मराठा वास्तुकला के अनुसार दीपस्तंभ स्थापित किए गए हैं, जो कई दियों से सुशोभित है। दक्षिण में एक बावड़ी बनी हुई है, जो पुराणों के अनुसार एक तीर्थ है। इस बावड़ी के ऊपर एक 1447 संबंध का शिलालेख भी उत्कीर्ण है।
हरसिद्धि माता का मंदिर कहां है - where is harsiddhi temple
हरसिद्धि माता का मंदिर उज्जैन का एक प्रसिद्ध मंदिर है और यह मंदिर उज्जैन में रूद्र सागर के पास ही में स्थित है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से कुछ कदमों की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में पहुंचना बहुत आसान है और यह उज्जैन रेलवे स्टेशन से करीब ढाई किलोमीटर दूर होगा। आप यहां पर आसानी से आ सकते हैं।
हरसिद्धि माता मंदिर फोटो - Harsiddhi Mata Mandir Photo Ujjain
मां हरसिद्धि मंदिर का एंट्री गेट |
मुख्य हरसिद्धि माता मंदिर |
कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर |
परिसर में बरगद का वृक्ष |
मंदिर परिसर का दीपस्तंभ |
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