सिद्धवट घाट और मंदिर उज्जैन - Siddhawat Ghat and Temple Ujjain
श्री सिद्धवट मंदिर और सिद्धवट घाट उज्जैन शहर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह उज्जैन शहर में भैरवगढ़ में स्थित है। हम लोग अपनी उज्जैन यात्रा में सिद्धवट भगवान के भी दर्शन करने के लिए गए थे। यहां पर प्राचीन वटवृक्ष के दर्शन करने के लिए हम लोगों को मिले थे। यहां पर शिप्रा नदी का सुंदर घाट है। घाट के किनारे ही एक बड़ी सी दीपमाला देखने के लिए मिलती है। यहां पर शिव भगवान जी की बहुत सारी शिवलिंग है, जिनके दर्शन किए जा सकते हैं। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है और बहुत शांति वाला माहौल है।
सिद्धवट घाट में मुख्य रूप से श्राद्ध किया जाता है। यहां पर श्राद्ध के समय पर बहुत ज्यादा भीड़ लगती है। पूरे भारत के बहुत सारे लोग यहां पर आते हैं और यहां पर श्राद्ध की क्रिया को करते हैं। यहां पर भगवान शिव, भगवान राम जी के मंदिर देखने के लिए मिलते हैं। हमारे उज्जैन यात्रा में हम लोग भी काल भैरव मंदिर घूमने के बाद, सिद्धवट घाट घूमने के लिए गए थे। यह घाट मुख्य रोड में ही स्थित है और यहां पर प्रवेश के लिए बहुत बड़ा गेट है। हम लोग गेट से अंदर गए और अपनी गाड़ी खड़ी की। यहां पार्किंग के लिए बहुत बड़ी जगह है और यहां पर ढाबा भी है, जहां पर खाने पीने के लिए अच्छा खाना मिल जाता है। हम लोग सीधे सिद्धवट के दर्शन करने के लिए गए।
सिद्धवट मंदिर और घाट की तरफ जाते हुए हम लोग को बहुत सारे प्रसाद की दुकान भी मिले थे और प्रसाद वाले हम लोगों को प्रसाद लेने के लिए बोल रहे थे। मगर हमें प्रसाद लेना नहीं था। क्योंकि हमें आगे का और भी सफर करना था। इसलिए हम लोग सीधे सिद्धवट मंदिर में दर्शन करने के लिए गए और यहां पर बहुत सारे पंडित जी लोग बैठे थे। यह पंडित जी लोग यहां पर श्राद्ध के लिए और संतान प्राप्ति के लिए पूजा करते हैं। यहां पर बहुत सारे शिव मंदिर है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है और यहां पर बहुत शांति थी। शिप्रा नदी का दृश्य भी बहुत ज्यादा आकर्षक लग रहा था। मगर यहां पर थोड़ा साफ सफाई का अभाव था। यहां पर आकर अच्छा समय बिताया जा सकता है।
हम लोगों ने यहां पर सिद्धवट वटवृक्ष के दर्शन किए। यह एक प्राचीन वटवृक्ष है। इस वृक्ष को पार्वती जी ने लगाया था। वटवृक्ष हरा भरा था और इस वट वृक्ष के बारे में बहुत सारी मान्यताएं प्रसिद्ध है। वटवृक्ष के पास में शिव भगवान जी की प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह प्रतिमा थोड़ी अलग सी है। यहां पर सिद्धिविनायक गणेश जी की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन करने के लिए भी हम लोगों को मिले। यहां पर पंडित जी भी बैठे थे। हम लोगों ने शिव भगवान जी और वटवृक्ष के दर्शन किए। उसके बाद हम लोग शिप्रा नदी के घाट के पास कुछ देर बैठे रहे। यहां पर बहुत अच्छा लगता है और मछलियां भी देखने के लिए मिलती हैं। उसके बाद हम लोग अपनी आगे की यात्रा की तरफ निकल गया। यहां पर बहुत सारे बंदर भी थे और इनमें से एक बंदर बिचारा मर गया था। छोटा बच्चा था। वह मर गया था और उसकी मृत शरीर वहीं पर पड़ा था। जिसका हमें लोगों को बहुत बुरा लगा।
सिद्धवट मंदिर का इतिहास - History of Siddhavat Temple
श्री सिद्धवट का महत्व - shree Siddhavat ka mahatva
उज्जैनी नगरी में भगवान श्री सिद्धवट का महत्व उसी प्रकार है। जिस प्रकार प्रयाग में अक्षयवट, गया में बौद्ध बट तथा मथुरा वृंदावन में वंशीवट का महत्व है। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के उल्लेख अनुसार इस वट वृक्ष का रोपण स्वयं जगत जननी माता पार्वती ने अपने हाथों से किया था तथा शंकर पुत्र स्वामी कार्तिकेय को वटवृक्ष के नीचे भोजन कराया था। श्री कुमार स्वामी अर्थात शिव पुत्र कार्तिक को देवताओं ने इसी स्थान पर देवासुर संग्राम के पूर्व सेनापति पद पर अभिषेक किया था। इसी के बाद कार्तिक स्वामी ने तारकासुर राक्षस का वध किया था तथा वध के पश्चात वह शक्ति यही शिप्रा नदी में लीन हुई। तभी से इस तीर्थ का नाम शक्ति भेद तीर्थ कहलाया।
इतिहास के वर्णन अनुसार सम्राट विक्रमादित्य ने इसी वट वृक्ष के नीचे घोर तपस्या कर, बेताल को वश में करने की सिद्धि प्राप्त की थी। भारत सम्राट अशोक पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्र ने श्रीलंका आदि सुदूर देशों में इसी वटवृक्ष का पूजा अर्चना कर धर्म प्रचार की यात्राएं की थी।
एक अन्य ऐतिहासिक वर्णन के अनुसार इस वट वृक्ष को मुगल काल में कटवा कर सात लोहे के तवे से जुड़वा दिया था। किंतु उन तवों को भी फोड़ कर, यह वटवृक्ष पुनः हरा भरा हो गया।
यह वटवृक्ष कल्पवृक्ष है। संपत्ति अर्थात भौतिक व अलौकिक सुख सुविधा हेतु वटवृक्ष पर रक्षा सूत्र बांधते हैं
सद्गति अर्थात मोक्ष हेतु पिंडदान, तर्पण तथा दुग्ध अभिषेक, संतान प्राप्त पुत्र कामना हेतु स्वास्तिक चिन्ह अंकित कर मन्नत करने का विधान है। यहां पर प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष चतुर्दशी पर कच्चा दूध चढ़ाने का महत्व है। यहां वर्ष में कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तथा वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या का मुख्य स्नान एवं मेला का विशेष महत्व है। उज्जैन में लगने वाला कार्तिक मेला इसी तीर्थ से जाना जाता है।
भारत वर्ष में सिर्फ सिद्धवट घाट और नासिक में कालसर्प दोष शांति व नागबली नारायण बलि कर्म किया जाता है। यह स्थान शासन द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
सिद्धवट घाट कहां पर स्थित है - where is siddhavat ghat
सिद्धवट घाट उज्जैन का प्रसिद्ध स्थल है। सिद्धवट उज्जैन के भैरव गढ़ में स्थित है। सिद्धवट मुख्य सड़क में स्थित है। यहां पर कार और बाइक से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पर पहुंचने के लिए अच्छी सड़क है। यहां पर पार्किंग की भी अच्छी व्यवस्था है। यहां पर निशुल्क पार्किंग उपलब्ध है।
सिद्धवट घाट की फोटो - Photos of Siddhavat Ghat
सिद्धवट घाट का मंदिर |
शिप्रा नदी |
सिद्धवट घाट का दीपमाला |
श्री काल भैरव मंदिर उज्जैन
Please do not enter any spam link in comment box