राजा भर्तृहरि की गुफा या भरथरी की गुफाएं उज्जैन - Raja Bhartrihari ki gufa or Raja Bharthari ki gufa ujjain
भरथरी की गुफा या भर्तृहरि की गुफाएं उज्जैन शहर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। भर्तृहरि की गुफाएं गोरखनाथ मठ के द्वारा प्रबंधित की जाती है। यहां पर दो गुफाएं है। इनमें से एक गुफा भूमिगत है। भूमिगत गुफा में जाने के लिए बहुत सकरा रास्ता है और नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। आप गुफा के नीचे जाएंगे। तो नीचे एक बड़ा सा हॉल है और भगवान शिव का शिवलिंग विराजमान है। यहां पर आप आकर बहुत अच्छा लगेगा और बहुत शांति वाला माहौल रहता है। दूसरी गुफा में भी शिवलिंग विराजमान है। इस शिवलिंग को नीलकंठेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। भर्तृहरि गुफा के पास मंदिर भी बना हुआ है और यहां पर बहुत सारे देवी देवता विराजमान है। यहां पर शिप्रा नदी पर सुंदर घाट बना हुआ है। जिसे भर्तृहरि घाट कहते हैं। यहां पर गौशाला बनी हुई है, जहां पर उच्च कोटि की गायों को रखा गया है। यहां पर हम लोगों को बहुत अच्छा लगा।
हमारे उज्जैन के सफर में हम लोग भर्तृहरि गुफा घूमने के लिए गए थे। भर्तृहरि गुफा महाकाल मंदिर से करीब 5 किलोमीटर दूर होगी। यह गुफा उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे पर बनी हुई है। यह गुफा गढ़कालिका मंदिर से करीब 1 किलोमीटर आगे स्थित है। हम लोग गढ़कालिका मंदिर घूमने के बाद, इस गुफा में घूमने के लिए गए थे। गुफा में जाने के लिए पक्का रास्ता है और रास्ते के दोनों तरह खूबसूरत खेत है। गुफा में पहुंचकर हम लोगों ने अपनी गाड़ी पार्किंग में खड़ी करी और उसके बाद हम लोग सीढ़ियों से नीचे उतरे। यहां पर सीढ़ियों के दोनों तरफ बहुत सारी दुकानें थी, जहां पर तरह-तरह का सामान मिल रहा था। यहां पर खाने-पीने की भी बहुत सारी दुकानें थी। यहां पर मुख्य रूप से गायों की सेवा की जाती है। इसलिए यहां पर गायों के लिए चारा रखा हुआ था, जिसे खरीद कर गायों को खिलाया जा सकता था। इसके अलावा यहां पर गायों का ताजा दूध भी पीने के लिए मिल रहा था। यहां पर शायद 10 रूपए का 1 गिलास दूध मिल रहा था।
यहां पर हम लोग सीढ़ियों से नीचे आए, तो हम लोगों को यहां पर गौशाला देखने के लिए मिले, जहां पर अच्छी किस्म की गायों को रखा गया था। यहां पर हम लोगों ने चप्पल स्टैंड में चप्पल उतारी। उसके बाद आगे बढ़े, यहां पर नीचे भी गायों को खिलाने के लिए चारा रखा हुआ था। यहां पर कुछ मूल्य देकर चारा खरीद कर, गायों को खिला सकते थे। हम लोग गुफा की तरफ आगे बढ़े। हमें यहां पर बहुत सारे देवी देवताओं के दर्शन करने के लिए मिले। यहां पर शंकर भगवान जी का शिवलिंग भूमिगत था। हमें यहां काल भैरव जी के दर्शन करने के लिए मिले। विक्रम बेताल जी के दर्शन करने के लिए मिले और यहां पर हनुमान जी की प्रतिमा के भी दर्शन करने के लिए मिले। इन सभी देवी देवताओं के दर्शन करके हम लोग आगे बढ़े। आगे हम लोगों को गुफाएं देखने के लिए मिली। यहां पर दो गुफाएं हैं। एक गुफा भर्तृहरि जी की है और दूसरी गोपीचंद जी की है।
हम लोग सबसे पहले गुफा नंबर 1 भर्तृहरि जी की गुफा में गए। भर्तृहरि जी की गुफा भूमिगत है। गुफा के बाहर लिखा गया है, कि गुफा में बैठना और फोटो खींचना मना है। यहां पर गुफा के ऊपरी सिरे में हम लोगों को महायोगी मत्स्येंद्रनाथ जी का मंदिर देखने के लिए मिला और यहां पर महाकाली जी के दर्शन करने के लिए मिले। गुफा के निचले भाग में जाने के लिए, यहां पर बहुत सकरा रास्ता है और सीढ़ियों के द्वारा हम लोग नीचे गए। यहां पर नीचे जब हम लोग गए, तो यहां पर नीचे बहुत बड़ा हॉल था और यहां पर छोटी-छोटी तीन गुफाएं थी। जिनमें से एक गुफा में भर्तृहरि जी साधना किया करते थे। उनकी यहां पर मूर्ति विराजमान है और यहां पर धूनी जलती रहती है। यहां पर एक गुफा में हमें सुरंग देखने के लिए मिलती है। इस सुरंग के बारे में कहा जाता है, कि इस सुरंग के माध्यम से चारों धामों के दर्शन किए जा सकते हैं। इस सुरंग का रास्ता कहां-कहां जाता है। वह किसी को भी नहीं पता है। प्राचीन समय में भर्तृहरि जी इसी सुरंग के माध्यम से काशी, बद्रीनाथ जैसी जगह में जाया करते थे। यहां पर तीसरी गुफा में शिवलिंग विराजमान है। हम लोगों ने शिवलिंग के दर्शन किए। उसके बाद ऊपर आ गए और गुफा नंबर दो में गए।
गुफा नंबर दो गोपीचंद जी की गुफा है। यह गुफा भी बहुत सकरी है और इस गुफा में ठीक से खड़े होते भी नहीं बनता है। इस गुफा की ऊंचाई ज्यादा नहीं है। इस गुफा में गोपीचंद जी का साधना स्थल देखने के लिए मिला, जहां पर उनकी मूर्ति विराजमान है और गुफा में अंदर जाकर शिवलिंग विराजमान है। इस शिवलिंग को नीलकंठेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है। गुफा में लाइट की पूरी व्यवस्था है और गुफा में एक-एक करके लोग आराम से जा सकते हैं। हम लोग गुफा नंबर 2 के दर्शन करने के बाद, बाहर आये और यहां पर मंदिर गए।
यहां पर शंकर भगवान जी को समर्पित श्री नवनाथ मंदिर है। यहां पर शंकर भगवान जी की बहुत ही सुंदर प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। मंदिर के ठीक सामने श्री पीर गंगा नाथ जी की समाधि देखने के लिए मिलती है। यहां पर एक छतरी बनाई गई है और समाधि के बीच में चरण पादुका के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यहां पर श्री श्री 108 पीर बृहस्पति नाथ महाराज जी के समाधि के भी दर्शन करने के लिए मिलते हैं। हम लोग दर्शन करके बाहर आए। बाहर यहां पर शिप्रा नदी का सुंदर घाट बना हुआ है, जहां पर घूमने के लिए जाया जा सकता है। मगर हम लोग नहीं गए। मगर आप यहां पर घूमने के लिए आते हैं, तो आप यहां पर जरूर जाएं। यहां पर हमने जहां पर चप्पल उतारी थी। वहां पर हमने चप्पल की देखरेख करने वाले को 5 रूपए दिया। अपनी इच्छा अनुसार आप, जो देना चाहे दे सकते हैं। हम लोग सीढ़ियों से ऊपर आए और यहां पर हम लोगों ने अपनी पेट पूजा के लिए भेलपुरी खरीदें, क्योंकि हम लोगों को बहुत भूख लग गई थी इसीलिए और आगे जाकर हम लोगों ने चाय भी पिया। यहां पर एक छोटा सा क्यूट सा डॉगी था, जो बहुत प्यारा था। हम लोगों ने उसको खिलाया और उसके बाद हम लोग अपने उज्जैन सफर में आगे चल दिए।
भर्तृहरि का जीवन परिचय (चक्रवर्ती सम्राट भर्तृहरि) - Biography of Bhartrihari (Chakravarti Emperor Bhartrihari)
योगीराज भर्तृहरि के पिता उज्जैयनी नरेश महाराज गंधर्वसेन थे। महाराजा गंधर्व सेन की चार संताने थी। भर्तृहरि, विक्रमादित्य, सुभटवीर्य और मैनावती। मैनावती गोंड़ बंगाल के शासक राजा माणिकचंद की रानी और योगीराज गोपीचंद की माता थी। राजा भर्तृहरि विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। राजा भरथरी पराक्रमी, सामर्थ्यवान, धैर्यवान, ज्ञान, नीति, विवेक, साम, दाम, दंड, भेद से परिपूर्ण न्याय प्रिय चक्रवर्ती राजा थे। 108 राजा और अधिराजा उनके चरणदेश में नतमस्तक थे। त्रिलोक सुंदरी रानी पिंगला उनकी अतिप्रिया पत्नी थी। नित्य प्रति महाराज भर्तृहरि की आसक्ति रानी पिंगला में बढ़ती ही गई। याैवन के वसंत का विहार होता ही रहा। राजा भरथरी को पता था, कि यह सब अच्छा नहीं है। यह सब चीजें नाशवान है और एक दिन यह नाश हो जाएगा। यह दुखालय है। इसके समस्त पदार्थ मोह बंधन में जकड़ने वाले हैं। निसंदेह संसार और उसके पदार्थों के परे भी किसी की सत्ता है, जो शाश्वत शांति और परम आनंद की विधि है और यही जीव का परम लक्ष्य है।
भर्तृहरि ने किस ग्रंथ की रचना की है - Bhartrihari famous books
योगीराज भर्तृहरिनाथ जी द्वारा लिखित कुछ अमर ग्रंथ इस प्रकार है - १) सुभाषितात्रिशती (नीति शतक, श्रृंगार शतक, वैराग्य शतक,)
२) वाक्यपदीयम (तीन कांड)
३) वाक्यपदीय टीका (1 और 2 कांड)
४) महाभाष्यदीपिका (महाभाष्य टीका)
५) वेदांतसूत्रवृत्ति
६) शब्दधातुसमीक्षा
यह योगीराज भर्तृहरिनाथ प्रमुख ग्रंथ थे।
महाराजा भर्तृहरि और गुरु गोरक्षनाथ जी की भेंट
2500 वर्ष पूर्व सम्राट भर्तृहरि आखेट करने तोरणमाल पर्वत श्रृंखलाओं के घने जंगल में गए। वहां उन्होंने भागते हुए हिरण का आखेट किया। योग संयोगवंश श्री गुरु गोरक्षनाथ जी उसी वन में तपस्या में लीन थे। वह घायल हिरण भागता हुआ तपस्या में लीन गुरु गोरक्षनाथ जी के समीप ही गिर गया और वहीं उसके प्राण पखेरू उड़ गए। राजा भर्तृहरि आखेट का पीछा करते-करते वही पहुंचे। सामने देखा तो एक महा तेजस्वी योगी समाधि में लीन बैठे हुए हैं और उनके चरणों के समीप हिरण भी मृत पड़ा हुआ है। महाराजा भर्तृहरि ने उन्हें प्रणाम किया और अपना आखेट मांगने लगे। श्री गोरक्षनाथ जी ने उनकी ओर देखा और बोला राजा और योगी में कौन बड़ा है। इस पर भर्तृहरि मौन हो गए। तब गुरु गोरक्षनाथ जी ने स्पष्ट किया। राजा प्राणी को केवल मार सकता है। किंतु योगी मार भी सकता है और जीवित भी कर सकता है। राजा अपराधबोध से ग्रसित होकर संकोच से बोले - हे नाथ यदि आप इस हिरण को जीवित कर दें। तो मैं अपना संपूर्ण राजपाट छोड़कर आपका शिष्य हो जाऊंगा। राजा भर्तृहरि की प्रार्थना पर गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपनी विभूति को मृत संजीवनी मंत्र से अभिमंत्रित कर हिरण पर छिड़क दी। उनके आशीर्वाद और योग शक्ति के प्रभाव से हिरण जीवित हो उठा। राजा भर्तृहरि आश्चर्यचकित होते हुए बहुत प्रभावित हो गए और करबद्ध प्रार्थना करने लगे हैं। हे महासिद्ध, हे नाथ मैं आपकी शरण में हूं। आप मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें। श्री गोरक्षनाथ जी जानते थे, कि राजा भर्तृहरि महारानी पिंगला से अति प्रेम के कारण ईश्वर भक्ति नहीं कर सकते। गुरु गोरक्षनाथ जी ने कहा राजन अभी उचित समय नहीं आया। भविष्य में देखेंगे। योग मार्ग अत्यंत कठिन है। जंगल में धुना लगाकर भभूति रमानी पड़ती है। 56 प्रकार के पकवानों का त्याग कर रूखी सूखी रोटी का टुकड़ा या जो भी मिले भिक्षा में प्राप्त खाना पड़ता है। आपके लिए यह असंभव है। राजन आप प्रस्थान करें और अपने राज्य कार्यों पर ध्यान दें। राजा भर्तृहरि और श्री गोरक्षनाथ जी का अत्यंत श्रद्धा भाव से प्रणाम कर वापस अपने महल लौट गए।
महारानी पिंगला का पतिव्रता धर्म
धीरे-धीरे समय बीतता गया। 1 दिन महाराजा भर्तृहरि वन में आखेट को निकले। वन में पहुंचकर उनके मन में विचार आया कि, क्यों ना महारानी पिंगला का पतिव्रता धर्म की परीक्षा ली जाए। यह विचार कर उन्होंने एक हिरण का आखेट किया। उसके रक्त अपने राजसी वस्त्रों में रंग कर अपने विश्वस्त सैनिकों के हाथों राज महल में महारानी पिंगला को इस संदेश के साथ भिजवाया, कि महाराजा भर्तृहरि जी शेर ने मार कर खा लिया है। पतिव्रता महारानी पिंगला यह संदेश सुनते ही परलोक सिधार गई। जब महाराजा भरथरी ने वापस राजमहल आकर अपनी प्राण प्रिय पत्नी को मृत देखा। तो वह अत्यंत दुखी हो गए और श्मशान भूमि में जाकर चिता के सम्मुख बैठकर हाय पिंगला, हाय पिंगला पुकारने लगे। उनकी करुण पुकार और हृदय विदारक रुदन श्मशान में समस्त दिशाओं में गूंजने लगा।
भर्तृहरि जी का वैराग्य उदय
महायोगी गोरक्षनाथ जी ध्यान अवस्था में अवंतिका नगरी के चक्रवर्ती सम्राट भरथरी जी के इस घटना से अवगत हो चुके थे। वह जान गए थे, कि अब राजा भर्तृहरि का वैराग्य लेने का उचित समय आ गया है। इसलिए महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने तपोबल से अवंतिका नगरी की उसी श्मशान भूमि में जहां भर्तृहरि करुण विलाप करते हुए - हाय पिंगला, हाय पिंगला कर रहे थे। एक मिट्टी की मटकी लेकर साधारण व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और वही भर्तृहरि के सामने जोर से मटकी भूमि पर गिरा कर तोड़ दी और हाय मटकी हाय मटकी कह कर रोने लगे। उनका रोना सुनकर भर्तृहरि जी आश्चर्यचकित उनके पास पहुंचे और उनका सांत्वना देते हुए समझाने लगे, कि तुम क्यों इस मिटटी की मटकी के लिए शोक कर रहे हो। मैं ऐसी सैकड़ों मटकी तुम्हें दे सकता हूं। श्रीनाथजी ने उत्तर दिया, कि मेरी टूटी मटकी जैसी मटकी आप कदापि नहीं दे सकते और महाराज आप भी तो माया मोह के जंजाल के लिए शोक कर रहे हैं। अगर आप चाहे, तो मैं आपको पिंगला जैसी सैकड़ों पिंगला दे सकता हूं। यह कहकर गोरक्षनाथ जी ने अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए। उज्जैनी नरेश भर्तृहरि जी आश्चर्यचकित हो, उन्हें देखते रह गए और फिर विवेकपूर्ण विचार कर बोले - महाराज यदि आपने ऐसा कर दिया, तो मैं आपके चरणों का दास बन जाऊंगा। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी ने योग माया कामनी मंत्र से अभिमंत्रित कर अपनी झोली से भभूत निकालकर पिंगला की चिता भस्म के ऊपर फूंक मारी। देखते ही देखते अनेक पिंगला श्मशान में प्रकट हो गई।
सम्राट भर्तृहरि अत्यंत विस्मित भाव से असंभव को संभव होता हुआ, यह चमत्कार देखते ही रह गए। उनकी आंखे चकित हो गई। वह एक अनोखी अनुभूति को प्राप्त कर गए। राजा भर्तृहरि ने चिंतन किया कि जिस योग विद्या से अनेक पिंगला प्रकट हो सकती है। उसे ही ग्रहण करना श्रेयस्कर है। अतः थोड़े समय पश्चात जब उनका विवेक जागृत हुआ। तो उनके सम्मुख सत्य और असत्य, सुख-दुख, मोह माया, राज पाठ इत्यादि का भेद खुलने लगा। उनका सारा भ्रम टूटने लगा। उन्हें सारा संसार नश्वर लगने लगा और वह वहीं महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी के चरणों में गिर पड़े और उनके दास बन गए। गुरु गोरक्षनाथ जी ने श्मशान भूमि में ही योग और वैराग्य का उपदेश दिया और राजा भरथरी ने तपस्या में लीन हो गए।
भर्तृहरिनाथ जी की तपस्या
भर्तृहरि जी ने स्वर्ण आभूषण और राशि परिधानों का त्याग कर दिया और शरीर में भस्म मेकला, श्रृंगी, रुद्राक्ष और कथा धारण कर अपना योग श्रृंगार किया और वह बैरागी, त्यागी, फक्कड़ महात्मा भर्तृहरिनाथ बन गए। उन्होंने अपने चित्त को स्थिर समाधि में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने समझ लिया, कि वास्तविक शांति का पथ वैराग्य है। मैंने आज तक नश्वर सुख और वस्तुओं में अपना जीवन खो दिया है। मैंने यह कार्य नहीं किया, जिसके लिए संसार में जन्म लिया है। उन्होंने विचार किया कि जीव हिंसा से निवृत्त रहना, परिधान हरण से दूर रहना, तृष्णा के प्रभाव को रोक लेना, विनम्र रहना, प्राणी मात्र के प्रति दया करना, शास्त्र चिंतन करना और नित्य अच्छे कर्म करना ही वास्तविक कल्याण का पथ है।
उज्जैन स्थित इस गुफा में योगीराज भर्तृहरि (भरथरी) नाथ जी ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की। योगीराज भर्तृहरि नाथ जी की कठोर तपस्या से देवराज इंद्र को भय हुआ, कि कहीं यह मेरा सिहासन ना प्राप्त कर ले। इसलिए इंद्र ने योगिराज भर्तृहरि नाथ की तपस्या भंग करने के लिए वज्र अस्त्र का प्रहार किया। अपने तप के प्रभाव से योगिराज भर्तृहरि ने अपने एक हाथ से वज्र के प्रहार को शिला के ऊपर ही रोककर निशप्रभाव कर दिया। आज भी गुफा में ऊपरी शिला पर उनके हाथों का निशान प्रत्यक्ष प्रमाण है। वह महाज्ञानी और जीवमुक्त योगी थे। इस स्थान पर उन्होंने कठोर तपस्या कर, अनेक सिद्धियां प्राप्त की थी। वह शरीर को छोटा और वायु सामान हल्का बनाकर कभी हरिद्वार, कभी उज्जैन इत्यादि गुफा स्थानों पर प्रकट हो जाते थे और कभी दोनों स्थानों पर एक समय पर प्रकट हो जाते थे।
भरथरी की गुफा या भर्तृहरिनाथ की गुफा कहां पर है - Where is the cave of Bhartrihari Nath
थरथरी के गुफा या भर्तृहरिनाथ की गुफा उज्जैन शहर का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह गुफाएं शिप्रा नदी के किनारे बनी हुई है। यह गुफाएं गढ़कालिका मंदिर के करीब 1 किलोमीटर आगे हैं। महाकाल मंदिर से यह गुफाएं 5 किलोमीटर दूर होंगी। इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़क है। यहां पर पार्किंग की जगह भी है। यहां पर बाइक या कार से पहुंचा जा सकता है। यहां पार्किंग निशुल्क है।
भर्तृहरि नाथ गुफा की फोटो - Bhartrihari nath Caves images
श्री नवनाथ मंदिर |
श्री पीर गंगा नाथ जी की समाधि |
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