भीमबेटका रॉक शेल्टर और भीमबेटका रॉक पेंटिंग की जानकारी - Bhimbetka Rock Shelter and Bhimbetka Rock Painting
भीमबेटका की गुफाएं विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक धरोहर है। भीमबेटका की गुफाएं रायसेन जिले का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। भीमबेटका की गुफाएं भोपाल के पास में स्थित है। यह गुफाएं आदिमानव काल के समय की है। यहां पर गुफाओं में आदिमानव द्वारा बनाई गई पेंटिंग देखने के लिए मिलती है। यहां पर आदिमानव के द्वारा बहुत सारी पेंटिंग बनाई गई है। यहां पर प्राचीन समय में आदिमानव रहा करते थे। यह गुफाएं रातापानी वन्य जीव अभ्यारण के अंदर स्थित है। यहां पर चारों तरफ हरियाली देखने के लिए मिलती है और यह गुफाएं पहाड़ियों पर बनाई गई है। यहां पर पहाड़ियों का लाजवाब दृश्य देखने के लिए मिलता है। रातापानी वन्य जीव अभ्यारण में जंगली जानवर भी देखने का मौका मिल सकता है। यहां पर जानवरों और पक्षियों की बहुत सारी प्रजातियां देखने के लिए मिल सकती हैं। हम लोगों को यहां पर मोर देखने के लिए मिला था।
भीमबैठका गुफाओं के थोड़ा आगे जाने पर हम लोगों को मंदिर देखने के लिए मिला था। यह मंदिर वैष्णो माता को समर्पित है। यह मंदिर पहाड़ी में गुफा में बना हुआ है। यहां पर भी सुंदर पहाड़ियां देखने के लिए मिलती है और चारों तरफ का वातावरण हरियाली भरा है। भीमबेटका की गुफाएं किले के समान लगती हैं। भीमबैठका में 15 गुफाएं हैं। इन गुफाओं में जानवरों और मानवों की बहुत सारी पेंटिंग बनी हुई है। यह गुफाएं अब्दुल्लागंज के आगे अब्दुल्लागंज वन क्षेत्र में स्थित है। इन गुफाओं में चमगादड़ भी रहते हैं। यहां पर ढेर सारे बंदर भी थे। भीमबेटका गुफा में जो चित्रकारी की गई है और चित्रकारी का, जो उद्देश्य है। चलिए उसके बारे में जानते हैं और भीमबेटका गुफा के दर्शन करते हैं। भीमबेटका गुफाओं का वर्णन मैं अपने शब्दों में करती हूं।
हम लोग भोपाल शहर के पास स्थित भोजपुर मंदिर और आशापुरी मंदिर को घूमने के बाद भीमबेटका की गुफाएं देखने के लिए आए थे। यह गुफाएं भोपाल होशंगाबाद राजमार्ग में जंगल के अंदर की तरफ स्थित है। यहां पर आमछा कालन डैम भी देखने के लिए मिलता है। हम लोग आशापुरी मंदिर समूह से अब्दुल्लागंज आए। अब्दुल्लागंज से हम लोग होशंगाबाद रोड की तरफ बढ़े। यहां पर रास्ते में बोर्ड लगा हुआ है, जिसमें भीमबेटिका जाने के लिए डायरेक्शन दिया गया है। भीमबेटका की गुफाएं भोपाल होशंगाबाद हाईवे रोड से करीब 3.2 किलोमीटर अंदर जंगल की तरफ स्थित है। यहां पर हम लोग भीमबैठका की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ मुड़े और भीमबेटिका के गेट के पास पहुंच गए। भीमबेटका में प्रवेश के लिए सबसे पहले प्रवेश शुल्क देना पड़ता है।
हम लोग भीमबेटका में घूमने के लिए बाइक से गए थे। इसलिए हम लोगों का दो व्यक्तियों का 50 रूपए लगा। हम लोग भीमबेटिका के एंट्री गेट से अंदर गए। एंट्री गेट से भीमबेटका गुफा के रास्ते में खूबसूरत जंगल की वादियां देखने के लिए मिलती है। यहां पर हरी-भरी पहाड़ियां जंगल और मैदान देखने के लिए मिलते हैं। अगर आप लकी होते हैं, तो आपको जंगली जानवर भी देखने के लिए मिल जाते हैं। हम लोग भीमबेटका की गुफाओं के पास पहुंच गए। यहां पर पार्किंग के लिए अच्छी जगह है। यहां पर वॉचमैन बैठे रहते हैं। भीमबेटका गुफा के रास्ते में बहुत सारी जानकारियां दी गई हैं।
हम लोग भीमबेटका गुफा के पास पहुंचकर सबसे पहले अपनी गाड़ी पार्किंग में खड़ी की है। उसके बाद भीमबेटका गुफा की तरफ आगे बढ़े। यहां पर पतला सा रास्ता भीमबेटका गुफा की तरफ गया है। भीमबेटका गुफा में जाने के लिए, जो रास्ता है। वह पक्का बना दिया गया है। ताकि जो भी पर्यटक यहां पर घूमने के लिए आते है, उन्हें कोई परेशानी ना हो। रास्ते के दोनों तरफ पेड़ पौधे हैं। यहां पर बहुत सारी जानकारियां भी दी गई है, जिन्हें आप पढ़ सकते हैं। यहां पर सबसे पहले हम लोगों को दो गुफाएं देखने के लिए मिले। यह गुफाएं बहुत ही जबरदस्त लग रही थी। इन चट्टानों के नीचे गुफाएं बनी थी।
सबसे पहले हम लोग भीमबेटका की गुफा नंबर दो में गए। गुफा नंबर दो में हम लोगों को एक स्त्री, पुरुष और एक बच्चे की मूर्ति देखने के लिए मिली। यह मूर्तियां मानव निर्मित है। यह मूर्तियां मिट्टी की बनी हुई है। इन मूर्तियों के द्वारा यह बताने की कोशिश की गई है, कि प्राचीन समय में आदिमानव कैसे रहा करते थे। इन गुफाओं में आदिमानव रहा करते थे। इन गुफाओं को भीम बेटिका शैलाश्रय कहा जाता है।
शैलाश्रय क्रमांक 2 - गुफा नंबर दो या शैल आश्रय की ऊंचाई लगभग 5 मीटर है। इस गुफा के चित्र प्राकृतिक कारणों से धुंधले पड़ गए हैं। इस गुफा में 46 आकृतियों की पहचान की गई है, जिनमें मानव आकृतियां जानवर तथा कुछ ऐसे चिन्ह भी हैं, जिनके ठीक से पहचान नहीं हो पाई है। इस शैल आश्रय का सबसे सुस्पष्ट चित्र एक घुड़सवार का है, जिसे दीवार के बीच में देखा जा सकता है।
भीमबेटका गुफा नंबर 2 को देखने के बाद, हम लोग गुफा नंबर 1 के पास गए। यह गुफा बहुत बड़ी और बहुत सुंदर थी। इस गुफा को सभागृह के नाम से जाना जाता है और यह बहुत ही जबरदस्त दिख रही थी। इस गुफा में नीचे की तरफ लकड़ी के पट्टे बिछे थे, क्योंकि यहां पर खुदाई की गई है और यहां पर गड्ढे थे। इसलिए ऊपर लकड़ी के पट्टे बिछा दिए थे। आप यहां पर चल सकते थे। मगर जब हम लोग यहां पर गए थे। तब यहां पर काम चल रहा था। इसलिए गुफा में अंदर जाना मना था।
शैलाश्रय क्रमांक 1 - भीमबेटका की गुफा नंबर 1 या शैलाश्रय को भीमबैठका पुरास्थल के खोजकर्ता श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा III F-23 नाम दिया गया। इस शैल आश्रय की ऊंचाई जमीन से 20 मीटर है, जो कि एक संकीर्ण आधार पर अनिश्चितता से संतुलन बनाए हुए हैं। यहां सन 1973 से 1976 तक लगातार चार सत्रों में पुरातात्विक उत्खनन हुआ है, जिसके परिणाम स्वरूप यहां से अश्यूलियन काल के अंतिम चरण से लेकर मध्य पाषाण काल तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं। सबसे निचले स्तर से हस्तकुकुर, कुल्हाड़ी आदि पाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं। इस शैल आश्रय में कुछ ही चित्र प्राप्त हुए हैं, जो कि ऐतिहासिक काल से संबंधित है। शैलाश्रय की छत पर बाहय रेखा से निर्मित दो हाथियों का चित्रण है, जिसमें छोटे हाथी के ऊपर एक आदमी बैठा है। जिसके एक हाथ में अंकुश तथा दूसरे हाथ में भाला है तथा कमर में तलवार बंधी है। दोनों हाथियों के दांत काफी लंबे दिखाए गए हैं ।
हम लोग भीमबेटका शैलाश्रय दो को देखने के बाद आगे बढ़े। यहां पर पतला सा रास्ता है और पक्का रास्ता है और दोनों तरफ पेड़ पौधे लगे हुए हैं। यहां पर बहुत सारे बंदर भी थे। मगर बंदर किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं करते। अगर आप यहां पर आते हैं और बंदरों से शरारत ना करें, तो वह भी आपको हानि नहीं पहुंचाएंगे। अगर आप उन्हें परेशान करेंगे, तो वह आप पर हमला जरूर कर सकते हैं। यहां पर रास्ते के बीच में पेड़ पौधे लगे हुए थे। पेड़ पौधों को यहां पर काटा नहीं गया था और उन्हें बढ़ने दिया गया था। यहां पर पेड़ पौधों के नाम भी लिखे गए हैं। रास्ते में बैठने के लिए भी चेयर बनाया गया है और आप यहां पर बैठकर प्राकृतिक वातावरण में शांति का अनुभव कर सकते हैं। हम लोग जंगल के दृश्य को देखते हुए गुफा नंबर 4 के पास पहुंच गए।
भीमबैठका शैलाश्रय 4 को जंतु शैलाश्रय या जू रॉक के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस शैलाश्रय में बहुत सारे जानवरों के चित्र बने हुए हैं। इन चित्रों को चट्टानों में देखा जा सकता है। यहां पर बड़ी से लकड़ी के द्वारा दीवार बना दी गई है। ताकि चट्टानों से दूरी बनी रही और कोई भी इन शैल चित्रों के पास में ना जाए।
शैलाश्रय क्रमांक 4 - इस अर्धवृत्ताकार शैलाश्रय की ऊंचाई 3.4 मीटर तथा आगे की तरफ का क्षेत्रफल 14 मीटर गहराई 6.2 मीटर है। इस गुफा का नामकरण श्री डॉ वाकणकर द्वारा जू रॉक या चिड़ियाघर रखा गया था। क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों का सजीव चित्रण किया गया है। इस शैलाश्रय में कुल 453 आकृतियां बनी हुई है, जिनमें से 16 प्रजाति के 252 जानवरों की आकृतियों का चित्रण है। इसमें 90 मानव आकृतियों का भी अंकन है, जो विभिन्न क्रियाकलापों में दर्शाए गए हैं। इसके अलावा दो गिलहरियों, एक चिड़िया, 6 नियोजित अलंकरण, शंख लिपि में एक अभिलेख तथा नौ अन्य आकृतियां बनी है। इस शैलाश्रय में आकृतियां 10 स्तरों में एक के ऊपर एक बनी है। अधिकांश आकृतियां प्रगोतिहासिल काल की है तथा कुछ आकृतियों का चित्रण छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बाद हुआ है।
गुफा नंबर 4 देखने के बाद हम लोग आगे बढ़े, तो हम लोगों को गुफा नंबर 5 देखने के लिए मिली।
शैलाश्रय क्रमांक 5 - इस शैलाश्रय में दो प्रकोष्ठ है, जो एक के ऊपर एक हैं। दोनों ही प्रकोष्ठ में चित्र विद्यमान हैं, जो कि सफेद तथा लाल, गेरुआ रंग के घोल से चित्रित है। ऊपरी खंड में बकरी, हिरण तथा अन्य जानवरों के चित्रण है। पेड़ पर चढ़े हुए लंगूर का बहुत ही सुंदर चित्रण यहां देखने को मिलता है।
भीमबैठका में गुफा नंबर 5 को देखने के बाद आगे बढ़ने पर, हमें एक चट्टान देखने के लिए मिली। यह चट्टान देखने में कछुए के आकार के समान लग रही थी। यहां पर व्यूप्वाइंट भी बना हुआ है। व्यू प्वाइंट पहाड़ी पर बना हुआ है। पहाड़ी पर हम लोग चढ़ गए और यहां से चारों तरफ का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है।
इस पहाड़ी के दूसरी ओर बेतवा नदी का विशाल कछार मैदान दिखाई देता है। भीमबैठका तथा इसके आसपास की पहाड़ियां प्राकृतिक जल विभाजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भीमबेटका तथा इसके आसपास की पहाड़ियों के उत्तर में प्रभावित जल धाराओं जल स्त्रोतों का समागम बेतवा नदी में होता है। पहाड़ों की दक्षिण की ओर की जलधाराएं अंततः नर्मदा नदी में जाकर मिलती हैं। नदियों के अतिरिक्त भीमबैठका के दक्षिण पूर्व में जामुन झिरी नामक नाला बहता है। इसके अतिरिक्त यहां बाणगंगा, गुप्त गंगा नामक तीन सदाबहार झरने है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखने के बाद, हम लोग इस पहाड़ी से नीचे आ गए और आगे की गुफा देखने के लिए बढ़ गए।
भीमबैठका में आगे बढ़ने पर, हमें गुफा नंबर 8 देखने के लिए मिले। इस गुफा में हमें चमगादड़ भी देखने के लिए मिले थे। इस गुफा में हम लोग अंदर गए। इस गुफा अंदर जाकर खड़े हो सकते थे। अंदर जाने के लिए थोड़ा झुकना पड़ता था। इस गुफा में हमने चमगादड़ को बहुत करीब से देखा। यहां पर गुफा के ऊपर की तरफ बहुत सारे बंदर भी बैठे हुए थे। हम लोगों को डर लग रहा था। मगर बंदर यहां पर कोई नुकसान नहीं करते हैं। इस गुफा के ठीक सामने एक और गुफा बनी हुई थी, जो बहुत ही अद्भुत लग रही थी।
शैलाश्रय क्रमांक 8 - इस शैलाश्रय में एक मुख्य कक्ष है तथा पश्चिमी दिशा में एक छोटा प्रकोष्ठ है। बड़ा कक्ष दो तरह से बंद है तथा इसकी ऊंचाई भी कम है। इसकी छत पर चित्रण मिलता है, जो कि समय के साथ धुंधले पड़ चुके हैं। इनमें कवच पहने सैनिकों और घुड़सवार सेना की अच्छी चित्रण शैली देखने को मिलती है। शैलाश्रय के छत पर लाल गेरुआ रंग तथा सफेद रंग के चित्र स्पष्ट देखे जा सकते हैं। सफेद रंग के चित्र प्राचीन है, क्योंकि लाल रंग के चित्र इनके ऊपर किए गए हैं।
यहां पर शैल आश्रय 9 भी था। यहां पर शैल आश्रय के सामने लकड़ी की दीवार बना दी गई थी, ताकि कोई भी इसके करीब ना जाए।
शैलाश्रय क्रमांक 9 - इस पूर्वाभिमुखी शैलाश्रय के बाएं और एक छोटा सा सकरा प्रकोष्ठ है। इस शैलाश्रय के चित्र काफी आकर्षक है तथा यह भीम बैठका के अन्य चित्रों से काफी अलग है। इसमें लाल व गेरुआ रंग के अलावा हरे व पीले रंग में भी चित्रण किया गया है। एक गहरी सफेद पृष्ठभूमि के ऊपर एक गुलदस्ता, घोड़ा तथा हाथी पर सवार व्यक्ति का सुंदर चित्रण मिलता है।
इसके बाद हम लोग ने गुफा नंबर 10 देखा।
शैलाश्रय क्रमांक 10 - इस शैलाश्रय के अधिकांश चित्र की पहचान करना कठिन है। दीवार के बाई और एक पक्षी है, जो संभवतः मोर है, का चित्रण काफी स्पष्ट है। इसके अलावा एक तलवार धारी, एक हिरण तथा आठ ढोल बजाते और नाचते व्यक्तियों का चित्रण भी किया गया है। यह सभी चित्र सफेद रंग से किए गए हैं।
भीमबेटिका के शैलाश्रय 10 को देखने के बाद आगे बढ़ने पर, हमें शैल आश्रय 11, 12, 13, 14, 15 यह सभी शैल आश्रय देखने के लिए मिले। यह सभी शैल आश्रय आस-पास में ही बने हुए थे। इनमें से कुछ शैल आश्रय में पेंटिंग जो बनी हुई थी। वह ऊंचाई पर बनी हुई थी और इनकी पेंटिंग बड़ी और साफ दिख रही थी। इन चट्टानों का आकार भी बहुत अच्छा था। यह चट्टाने कुछ अलग ही प्रकार में दिख रही थी।
शैलाश्रय क्रमांक 11 - इस शैलाश्रय में ऐतिहासिक काल से संबंधित चित्र बने हैं। यहां के चित्र मुख्यतः सफेद रंग के हैं। कुछ चित्रों में लाल रंग की बाहय रेखा भी दी गई है। घुड़सवारो एवं पैदल सैनिकों के समूह चित्रों में कई जगह देखे जा सकते हैं।
शैलाश्रय क्रमांक 13 - इस शैलाश्रय में चित्रकारी काफी ऊंची जगह पर की गई है। यहां वराह की दो आकृतियों को छत में स्थित अलग-अलग खोह में चित्रित किया गया है। पहली आकृति शैलाश्रय क्रमांक 15 पर चित्रित सुप्रसिद्ध काल्पनिक वराह की आकृति से काफी समानता रखती है। सूअर के अन्य झुंड का चित्रण निचले भाग में भी किया गया है। यह एक शिकार का दृश्य, जिसमें 5 से 6 आदमियों को भी चित्रण किया गया है। सूअर के शरीर में ज्यामितीय अलंकरण बने हुए हैं। इस शैलाश्रय के पीछे सुप्रसिद्ध वराह शैलाश्रय स्थित है।
शैलाश्रय क्रमांक 14 - इस शैलाश्रय की ऊंचाई लगभग 6 मीटर है। एक मरे हुए सूअर को पकड़ कर ले जाने का दृश्य बहुत ही सुंदरता से चित्रित किया गया है। यह संपूर्ण दृश्य सफेद रंग से चित्रित है। यहां 11 आदमियों के एक दल को शिकार करते हुए दिखाया गया है। इन्होंने अपने हाथ में धनुष तथा बाण पकड़ा हुआ है। सिंदूरी रंग से चित्रित दृश्य में दो हाथी सवार एक अधूरे जानवर की छवि तथा सफेद रंग में 3 भैंसों के चित्र देखे जा सकते हैं। इस चित्र में जानवरों की काफी हष्ट पुष्ट दिखाया गया है। शरीर को मधुमक्खी के छत्ते वाले विन्यास से सजाया गया है।
शैलाश्रय क्रमांक 15 - यह शैलाश्रय देखने में छत्राक (मशरूम) की आकृति का लगता है, जो कि मुख्य रूप से एक विशालकाय वराह की आकृति के कारण प्रसिद्ध है। जिसका चित्रण जमीन से 9.85 मीटर की ऊंचाई पर हुआ है। इस विशालकाय जानवर के दो सिंग तथा एक बड़ी नाक है, जिसकी समग्र आकृति से अनुमान लगाया जा सकता है, कि यह एक काल्पनिक पशु है। इसकी नाक के पास एक मानवाकृति है तथा सामने की ओर एक केकड़ा बना है। इसके पिछले पैर के पास एक भैंस की आकृति बनी है। जिसका मुंह दूसरी तरफ है। इसके अलावा यहां पर मानव व पशुओं की आकृतियां है। पशु आकृतियों में भैंस, गाय गेंडा, लंगूर आदि की आकृतियां प्रमुख है।
भीमबेटिका के शैलाश्रय 11, 12, 13, 14, 15 देखने के बाद, आगे बढ़ने पर, हमें एक विशाल चट्टान देखने के लिए मिलती है। इस चट्टान में हमें बरगद के पेड़ की जड़ देखने के लिए मिलती है। जो नीचे तक जाती है, जो बहुत ही गजब लगती है। उसके बाद आगे बढ़ते हैं, तो हमारा रास्ता दो बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से रहता है और रास्ते में बीच में ही एक पेड़ लगा हुआ है। फिर हमें गुफा नंबर 7 देखने के लिए मिलती है।
शैलाश्रय क्रमांक 7 - इस शैलाश्रय में हम लोगों को सफेद कलर में चित्र बने हुए देखने के लिए मिलते हैं। इस गुफा में शिकार करते हुए लोगों को दिखाया गया है। इस गुफा में घोड़े पर सवार इंसानों को दिखाया गया है और वह भाला पकड़े हुए हैं। यहां पर शिकार करते हुए लोगों के बहुत सारे चित्र बने हुए हैं।
इसके बाद हम लोगों को गुफा नंबर 6 देखने के लिए मिलती है।
शैलाश्रय क्रमांक 6 - यह पूर्वाभिमुखी शैलाश्रय आकार में बहुत ही छोटा एवं सकरा है, जिसमें सफेद रंग से जानवरों का बहुत ही वास्तविक चित्रण किया गया है। वहां तीन सतहों में चित्रण किया गया है। सबसे प्रारंभिक, सतह जो कि सबसे नीचे है, के चित्र धुंधले पड़ गए हैं। यह चित्र शैल आश्रय के दाएं भाग में लाल रंग में देखे जा सकते हैं।
इसके बाद भीमबैठका में आगे बढ़ने पर, हम लोगों को गुफा नंबर 5 देखने के लिए मिले। इस गुफा में हम लोगों को सफेद रंग के चित्र देखने के लिए मिले। इस गुफा में जो चित्र बने हुए थे, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था। जैसे इस में नाचते गाते हुए लोगों का चित्र बनाया गया है। यह चित्र गुफा के ऊपर छत में और दीवार में बनाए गए हैं। इन चित्रों को देखकर लगता है, कि यहां पर मानव आकृति वाद्य यंत्र भी बजा रही है।
इन चित्रों को देखने के बाद हम लोग आगे बढ़े हैं और गुफा नंबर 1 में पहुंच गए। मतलब हम लोग सभागृह में आ गए। यहां पर हम लोगों ने कुछ फोटो क्लिक करें और उसके बाद हम लोग भीमबेटका गुफाओं के बाहर आ गए। यहां पर हमें बहुत अच्छा लगा। यहां पर घूमने के बाद हम लोग आगे की तरफ मंदिर की तरफ घूमने के लिए गए। यह मंदिर भीमबेटका गुफाओं से करीब आधा किलोमीटर दूर होगा। यहां पर गाड़ी और कार से आराम से जाया जा सकता है।
हम लोग अपनी गाड़ी से इस मंदिर में गए। यह मंदिर ऊंची चट्टानों के नीचे गुफा के अंदर बना हुआ है। यहां पर श्री वैष्णो देवी मंदिर है। यह मंदिर वैष्णो माता को समर्पित है। मंदिर के अंदर बहुत ही सुंदर प्रतिमा देखने के लिए मिलती है। यहां पर एक बरगद का पेड़ भी लगा हुआ था, जिसकी जड़े दूर दूर तक फैली हुई थी। यहां पर आकर हम लोग कुछ देर बैठे रहे। यहां पर एक आंटी ने दुकान लगाई थी, जहां पर खाने के लिए बहुत सारा सामान मिल रहा था। हम लोगों ने यहां पर खाने के लिए मूंगफली ली और यहां पर बैठकर खाए। यहां पर बहुत अच्छा लग रहा था। शांति मिल रही थी। यहां पर बहुत सारी मधुमक्खियां भी है। मंदिर के साइड में बहुत बड़ा मैदान है, जिस पर आप लकी रहते हैं, तो आपको पशु पक्षियों की प्रजातियां देखने के लिए मिल जाती हैं।
हमें यहां पर बहुत अच्छा लगा। बहुत शांति मिली और हम लोग को जाते समय एक मोर भी देखने के लिए मिला। हम लोग मेन रोड से जा रहे थे। तब मोर बहुत तेजी से दौड़ लगा रहा था और हम लोग के सामने से उड़कर, वह रोड के दूसरी तरफ चला गया और हम लोग भी अपने आगे के सफर के तरफ बढ़ चले हैं।
भीमबेटका की खोज किसने की - Bhimbetka gufa ki khoj kisne ki
भीमबेटका की खोज - भीमबैठका के शैलाश्रय एवं शैलचित्र की खोज डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर ने सन 1957 से 1958 में भीमबैठका की खोज की। डॉ वी श्रीधर वाकणकर ने भीमबेटिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। डॉ वी श्रीधर वाकणकर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्रोफ़ेसर थे। उनकी इस खोज तथा शोध के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
इस महत्वपूर्ण खोज ने शैल कला के क्षेत्र में अनेकों शोधों को नवीन दिशा प्रदान की। तत्पश्चात विभिन्न शोधकर्ताओं तथा संस्थानों ने अनेक चित्रित शैलाश्रय की खोज की तथा उनमें उत्खनन एवं अन्वेषण कर शैलाश्रय जीवन से संबंधित विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला।
भीमबेटका गुफा की विशेषता - Bhimbetka gufa ki visheshta kya hai
भीमबेटका (शैलचित्रों) की मुख्य विशेषता - भीमबैठका में बनाई गई चित्र से मानव आकृतियां, शिकार, सामूहिक नृत्य, पशु पक्षी, युद्ध, प्राचीन मानव की दैनिक क्रियाकलापों को दर्शाया गया है। यहां पर बनाए गए चित्रों से पता चलता है, कि यह पेंटिंग 100000 साल पुरानी है। मतलब भीमबैठका में सबसे पहले मानव की उत्पत्ति हुई है। भीमबैठका में और भी अन्य जगह हैं, जिन्हें देखा जा सकता है। भीमबेटका के आसपास बहुत सारे प्राचीन अवशेष पाए गए हैं। प्राचीन किले की दीवारें, लघु स्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शंगु- गुप्तकालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष यहां पर पाए गए हैं।
चित्रित शैलाश्रय भीमबैठका - भीमबैठका में 750 शैलाश्रय हैं, जिनमें 500 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सुसज्जित है। यह स्थल पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक मानव गतिविधियों का केंद्र रहा है।
भीमबेटका की गुफाएं कितनी पुरानी मानी जाती है - Bhimbetka ki gufa kitni purani mani jati hai
भीमबेटका की गुफाएं लाखों साल पुरानी है। भीमबेटका में आदिकाल से मानव निवास करता आया है। यहां हुए उत्खनन से मालूम चलता है, कि पूर्व पाषाण काल लगभग एक लाख से 40000 वर्ष पूर्व से लेकर मध्यकाल आज से लगभग 10000 वर्ष पूर्व तक, यहां मानव ने निवास किया है। इस लंबे काल तक मानव के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए। यहां से प्राप्त सांस्कृतिक अवशेषों जैसे पाषाण उपकरण, शवाधान तथा मुख्यतः चित्र मानव जीवन के विकास क्रम को दर्शाती है। इनमें से शैल चित्र मध्य काल के मानव को जानने का एक मुख्य जरिया है।
भीमबैठका का मंदिर - Bhimbetka ka mandir
भीमबेटका का ऐतिहासिक महत्व है। यहां पर आदिमानव रहा करते थे। भीमबैठका में आपको धार्मिक स्थल भी देखने के लिए मिलता है। भीमबेटका गुफा के थोड़ा आगे जाने पर आपको मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर वैष्णो माता का मंदिर है। यह मंदिर पहाड़ी के नीचे बना हुआ है। यह मंदिर बहुत सुंदर है। यहां पर प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए मिलता है। मंदिर में पंडित जी हैं, जो इस मंदिर के बारे में जानकारी देते हैं। यहां पर शांत वातावरण है। यहां पर आकर बैठा जा सकता है।
भीमबेटका के खुलने का समय - Bhimbetka ke khulne ka samay
भीमबैठका के खुलने का समय सुबह 7 बजे से शाम के 5 बजे तक है।
भीमबेटका की एंट्री फीस - Bhimbetka entry fee
भीमबैठका का प्रवेश शुल्क
अगर आप यहां पर बस या मिनी बस से आते हैं, तो आपका 300 रूपए लगता है।
कार, जीप या हल्के वाहन से आते हैं, तो 6 व्यक्तियों का 150 रूपए लगता है।
ऑटो से आते हैं, तो 3 व्यक्तियों का 100 रूपए लगता है।
बाइक से आते हैं, तो 2 व्यक्तियों का 50 रूपए लगता है और अगर आप यहां पैदल घूमने आते हैं, तो एक व्यक्ति का 12 रूपए लगता है।
भीमबेटका की गुफाएं किस राज्य में है - Bhimbetka ki gufa kis rajya mein hai
भीमबेटका की गुफाएं मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। यह गुफाएं मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर के पास स्थित है।
भीमबेटका की गुफाएं कहां स्थित है - Bhimbetka ki gufayen kahan per sthit hai
भीमबेटका एक विश्व प्रसिद्ध धरोहर है। भीमबेटका भोपाल के दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित है और भोपाल से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भीमबेटका की गुफाएं रायसेन जिले के अंतर्गत आती है। यह भोपाल होशंगाबाद मार्ग पर आदिवासी ग्राम भियापुर के निकट स्थित है। यहां पर आराम से बस, टैक्सी या खुद के वाहन से पहुंचा जा सकता है। यहां पार्किंग की बहुत अच्छी व्यवस्था है। भीमबेटका की गुफाएं विंध्याचल की पहाड़ियों पर स्थित है। यहां की पहाड़िया घने जंगलों से घिरी हुई है। यह जगह अब्दुल्लागंज के समीप में स्थित है।
भीमबैठका की गुफाएं कैसे पहुंच सकते हैं - Bhimbetka ki gufayen Me Kaise pahunch sakte hain
भीमबैठका का पहुंचना बहुत ही आसान है। अगर आप भीम बेटिका भारत के किसी अन्य राज्य से मध्यप्रदेश आ रहे हैं, तो आप भोपाल में ट्रेन के द्वारा और हवाई सफर के द्वारा पहुंच सकते हैं। भोपाल में इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। फिर आपको भीमबैठका तक जाने के लिए बस या प्राइवेट टैक्सी बुक करनी पड़ती है। आप प्राइवेट टैक्सी बुक करते हैं, तो वह आपको भीमबैठका तक पहुंचा देती है और अगर आप बस से भीमबैठका जाते हैं, तो वह आपको मुख्य सड़क भोपाल होशंगाबाद रोड में उतार देगी। मुख्य सड़क से आपको करीब 3 किलोमीटर दूर अंदर जंगल की तरफ जाना पड़ता है। भीमबैठका तक जाने के लिए जो रास्ता है। वह पूरा पक्का है और यहां पर जाने में किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आती है।
भीमबेटका की गुफा के चित्र - Bhimbetka cave images
भीमबेटका केव का सभागृह का सामने का दृश्य |
भीमबेटका केव का सभागृह का पीछे का दृश्य |
भीमबेटका से चारों तरफ का सुंदर दृश्य |
भीमबेटका की तरफ जाने वाला रास्ता |
भीमबेटका की गुफाओं की चित्रकारी |
भीमबेटका में जंतु शैलाश्रय |
भीमबेटका की गुफा |
भीमबेटका शैलाश्रय |
भीमबेटका शैलाश्रय |
भीमबेटका में चित्रकारी |
भीमबेटका में चित्रकारी |
भीमबेटका गुफा के अंदर चमगादड़ |
भीमबेटका का मंदिर श्री वैष्णो देवी मंदिर |
प्राचीन मां पार्वती गुफा मंदिर
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