नागद्वार (पचमढ़ी) की यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी
नागाद्वार एक धार्मिक जगह है, आपको नागाद्वार में नागदेवता का रहस्यमयी मंदिर देखने मिलता है। नागाद्वार में हर साल नागपंचमी के समय लाखों की संख्या में श्रध्दालु पहूॅचते है। नागाद्वार एक ऐसी जगह जो आपको पूरी तरह रोमांच से भर देती है। नागाद्वार में आपको पैदल चलना रहता है। यह एक एडवेंचर सफर होता है, यहां पर आपको किसी भी तरह की सुविधाएं नहीं मिलती है। नागाद्वार पर लोग दूर-दूर से नागदेवता के के दर्शन करने आते हैं। नागाद्वार पहुंचने के लिए पहले आपको रेल के माध्यम से पिपरिया स्टेशन आना होता है। उसके बाद बस के द्वारा पचमढ़ी पहुंच सकते है।
पिपरिया से पचमढ़ी तक का सफर
यह जो पिपरिया से पचमढ़ी का बस का सफर है वह बहुत ही अच्छा होता है, क्योंकि बरसात का टाइम रहता है और पचमढ़ी में चारों तरफ हरियाली रहती है पहाड़ों का बहुत ही खूबसूरत व्यू रहता है और आपको हर जगह छोटी-छोटी झरने देखने मिल जाते हैं, जो पहाड़ो से बहते रहते हैं और लोग उन झरनों में नहाते हुए दिख जाते हैं। खासतौर पर नाग पंचमी में मेले के टाइम में तो ये सफर लाजबाब होता है।
पचमढ़ी में बहुत से लोग अपने वाहन से भी नाग पंचमी के टाइम में आते हैं और और आप चाहे तो पिपरिया रेलवे स्टेशन से टैक्सी बुक करके या जिप्सी बुक करके भी पचमढ़ी तक आ सकते हैं। आप जिप्सी बुक करके आएंगे तो आप जिप्सी को कहीं पर भी रुका सकते हैं और खूबसूरत व्यू को इंजॉय कर सकते हैं। मगर बस में आप आते हैं तो आप बस को कहीं भी नहीं रोक सकते हैं, बस आपको पिपरिया से डायरेक्ट पचमढ़ी में ही रुकेगी तो आप बस से खूबसूरत व्यू देख सकते हैं पर उसका आंनद लेने के लिए ठहरा नहीं सकते है।
देनवा नदी का आकर्षक नजारा
पचमढ़ी का जो देनवा नदी का खूबसूरत व्यू पिपरिया से पचमढ़ी के रास्ते में पड़ता है तो यहां का व्यू बहुत ज्यादा मनोरम है आपको यहां पर कुछ समय रूकना जरूर चाहिए। यहां पर नागपंचमी के मेले के समय आपको यह पर बहुत सारे लोग देखने मिल जाते है क्योकि यहां पर भंडारा भी होता रहता है। यहां पर आप रूककर खूबसूरत व्यू का आंनद ले सकते है। बहुत से लोग इस व्यू को देखने के लिए यहां पर ठहरते है।
इस तरह आप खूबसूरत व्यू को इंजॉय करते हुए पचमढ़ी पहुंच जाते हैं। नाग पंचमी के मेले के समय पचमढ़ी नगर के बाहर ही गाड़ियों को रोका जाता है। आपको यह पर बहुत सारी बस और गाडियों देखने मिलती है। ऐसा लगता है कि गाडियों का जमघट लगा हो। यह पर नागपंचमी मेले के दौरान बहुत ज्यादा भीड रहती है। पार्किंग स्थल से आपको पैदल ही जाना पड़ता है, पचमढ़ी तक यह दूरी एक से डेढ़ किलोमीटर तक हो सकती है। नागपंचमी के मेले के समय यहां पर बहुत सी दुकाने लगती है। खाने पीने की बहुत सी दुकाने लगती है।
पचमढ़ी से नागद्वार तक का सफर
पचमढ़ी आकर आप जिप्सी के माध्यम से नागद्वार पहुॅच सकते है। नाग पंचमी के मेले के समय यहां पर ढेर सारी जिप्सी चलती हैं और इन जिप्सों का किराया बहुत ही सस्ता होता है, इस टाइम पर। आपको इस टाइम पर 30 से 40 रू में नागाद्वार तक पहुंचाया जा सकता है और इसके आगे का रास्ता आपको पैदल तय करना होता है। इस समय में जिप्सी में बहुत ज्यादा भीड़ रहती है। पचमढ़ी से नागद्वारी का जो रास्ता है वह बहुत ही खूबसूरत है। इस रास्ते में आपको पचमढ़ी झील देखने मिलती है,उसके बाद आपको चर्च देखने मिलता है, जो बहुत फेमस है और उसके बाद आप खूबसूरत हरे भरे जंगलों का व्यू देख सकते हैं। इन सभी व्यू का मजा लेते हुए आप नागाद्वार में जहां पर आपकी जिप्सी का स्टाॅप है वहां पर पहूॅच जाते है। यहां पर पुलिस कैम्प लगा होता है, जो अच्छी तरह से अपनी डयूटी निभाती है।
नागाद्वार से पैदल यात्रा
आपको इस स्टाप से पैदल यात्रा करनी होती है, नागद्वार के लिए। यहां पर आपको पक्की सड़क मिलती है कुछ दूरी के लिए। यहां पर एक घाट होता है,आपको इस घाट में चलकर जाना पड़ता है और इस घाट के दोनों तरफ आपको कई प्रकार की दुकानें देखने मिल जाती हैं। इस घाट में आपको एक खाई भी देखने मिलती है जिसमें से नदी बहती है। आप इसे पुल भी कह सकते हैं क्योकि यह पुल पहाड़ी रास्ते को जोड़ता है, और कहा जाता है कि खाई में नाग देवता दिखाई देते हैं, तो बहुत से लोग इस जगह को देखते हैं और यहां पर बहुत सारे कपड़े बंधे हुए रहते हैं। आप चाहे तो मेरा वीडियो भी देख सकते हैं, नागाद्वार का। उसमें आपको और अच्छी इंफॉर्मेशन मिल सकती है। यहां पर ढेर सारी दुकाने रहती हैं। जहां आपको चने मूंगफली मिलते है। मेरे हिसाब से तो आपको चना मूंगफली घर से साथ लाना चहिए क्योंकि यह बहुत महंगा मिलता है और मात्रा भी बहुत कम रहती है और यह बहुत लंबा रास्ता रहता है। आपको एनर्जी की जरूरत पड़ती है। यहां पर आप ग्लूकोस भी लेकर जाएं और अपने साथ पानी जरूर लेकर जाएं। यह घाट 1 से 2 किमी लंबा है और यहां पर पूरी खडी चढाई है। हमारी तो सांस भरने लगी थी यह पर। नागाद्वार जब हम लोग गए थे, तब यहां पर पूरा बादल छाया हुआ था, मगर बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि पूरी तरह से प्राकृतिक माहौल था। बादल बिल्कुल नजदीक में दिख रहे थे या यू कहें कि हम बादल के बीच से होकर चल रहे थे। यहां पर लोग भोले बाबा के जयकारे लगा रहे थे और ढोल भी बजा रहे थे, और ढोल के धुन में नाच भी रहे थे। यहां पर आपको पन्नी की बरसाती खरीदना पडता है क्योंकि यह पहाड़ी क्षेत्र है और यहां पर पानी कभी भी गिरने लगता है। तो आप बरसाती ओढ सकते हैं।
इस खडी ढलान वाली घाटी के अंत में आपको शिव भगवान का मंदिर देखने मिलता है और यहां तक आपको पक्का रास्ता मिलता है। यहां पर आपको नागद्वार का नक्शा भी देखने मिलता है। आपको इस नक्शे में यहां पर स्थित जो भी मंदिर है, उनकी जानकारी मिल जाती है और आपको कितनी दूरी चलना है इस नक्शे से पता चल जाता है। पूरी नागद्वार यात्रा का नक्शा आप यहां देख सकते है। यहां पर शंकर जी का मंदिर है जहां पर शिवलिंग स्थापित है। अब यहां से आपकी रोमाचकारी यात्रा शुरू होती है। आपको यहां से 18 किमी की यात्रा चालू होती है। यहां से नागाद्वार का मुख्य रास्ता शुरू होता है जो पूरी तरह कच्चा रास्ता है और पहाड़ी रास्ता है। आप यहां से 500 मीटर दूर चलेंगे तो आपको पहाड़ से आता हुआ एक झड़ना दिखाई देगा और नीचे एक कुंड बना दिया गया है जिससे पानी कुंड में इकटठा होता है। यहां पर शंकर जी का शिवलिंग भी रखा हुआ है, जो बहुत खूबसूरत लगता है, और जो पहाड़ों से पानी आता है वह भी बहुत खूबसूरत लगता है। यहां का जो रास्ता वहां बहुत पतला है इस रास्ते के एक ओर उची उची पहाड है तो दूसरी तरफ खाई है। आप आगे बढ़ते हैं तो आपको फिर से एक झरना देखने मिलता है, यहां पर भी पहाड़ों से पानी आता है और नीचे एक कुंड बनाया गया है जिसमें पानी इकटठा होता है। यहां पर आपको बहुत लोग नहाते हुए दिख जाते है। यहां पर आपको थकान बिल्कुल नहीं होती है क्योंकि यह का मौसम ठंडा रहता है। यहां पर बादल आपके आजू-बाजू ही घूमते रहते हैं। जंगल का चारों तरफ का व्यू रहता है वह हरियाली से भरा हुआ रहता है। आपको इस रास्ते में कुछ इस तरह के लोग भी देखने मिल जाते है जो टनों किलो वजन के त्रिशूल उठकर नागदेवता के मंदिर तक जाते है, अपनी मन्नत के पूरी होने पर। यह एक सोचने वाली बात है कि भगवान अपनी भक्तों को कितनी शाक्ति देता है। आप इस उबड खाबड रास्ते से होते हुए काला झाड़ पहुंच जाते हैं। इस जगह को भजिया गिरी भी कहते है।
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